शेर-ओ-शायरी

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शबे-गम किस तरह गुजरी, शबे-गम इस तरह गुजरी,
न तुम आये, न चैन आया, न मौत आई न ख्वाब आया।

-नूह नारवी


1.शबे-गम-विरह की रात  2.ख्वाब-नींद


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शम्अ मे ताकत कहाँ, जो एक परवाने में है,
लुत्फ जलने में नहीं, जल-जल के मर जाने में है।


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शरीके-बज्म होकर यूँ उचटकर बैठना तेरा,
खटकती है तेरी मौजुदगी में भी कमी अपनी।

         -फिराक गोरखपुरी

 

1.बज् -महफ़िल


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शाखे-गुल जिस तरह से हवा से मुड़े,
याद है तेरे रूठने की अदा।

-फिराक गोरखपुरी


1.शाखे-गुल - फूलों की डाली
 

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