शेर-ओ-शायरी

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आम है यूँ तो मेरी बर्बादियों का वाकेआ,
वह तो कह दें कि कोई मर मिटा मेरे लिये।
-उम्मीद लखनवी

 

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आया ही था खयाल कि आंखें छलक पड़ीं,
आंसू किसी की याद के कितने करीब हैं।

-अंजुम
 

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आये तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबाँ,
भूले तो यूँ कि जैसे कभी आश्ना न थे।

-फैज अहमद फैज


1.आश्ना - (i) मित्र, दोस्त (ii) परिचित, जानकार, वाकिफ

 

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आये हो कल और आज ही कहते हो कि जाऊं,
माना कि हमेशा नहीं अच्छा, कोई दिन और।
जाते हुए कहते हो कयामत को मिलेंगे,
क्या खूब कयामत का है गोया कोई दिन और।
-मिर्जा गालिब


1.कयामत - महाप्रलय, सारी दुनिया का उलट-पुलट, हश्र का दिन

 2.गोया - मानो, जैसे
 

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