इस शराबे-रंग-ओ-बू को गुलसिताँ समझा है तू,
आह! ऐ नादाँ कफस को आशियाँ समझा है तू।
-मोहम्मद इकबाल
1.कफस - पिंजड़ा
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एक शरारा भी
आशियाँ को जला देता है,
नादां है तू शोलों को हवा देता है।
1.शरारा -
चिनगारी, अग्निकण
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ऐ अजल, तुझसे यह कैसी नादानी हुई,
फूल वो तोड़ा, चमन भर में वीरानी हुई।
1.अजल -
मृत्यु, मौत
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ऐसे भी हैं अहले-चमन, जिन्हें आज तक यह पता नहीं,
जो गुलों के रंग में है अयाँ, खार में है वही लहू।
1. अहले-चमन -
चमन वाले 2. अयाँ -
प्रकट
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