नहीं है राज कोई राज दीदावर के लिये,
नकाब पर्दा नहीं शौक की नजर के लिये।
-आर्श मल्सियानी
1.दीदावर-जोहरी, पारखी, किसी चींज
के गुण-दोष अच्छी तरह समझने वाला
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ना सितम का कभी शिकवा, न करम की कभी ख्वाहिश,
देख तो हम भी हैं क्या सब्रो-कनाअत वाले।
-जौक
1.करम-मेहरबानी, कृपा 2.सब्रो-कनाअत -धीरज और संतोष
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नाकामिए -इश्क या कायमाबी,
दोनों का हासिल खाना-खराबी।
-हफीज जालंधरी
1.खाना-खराबी - घर की बर्बादी
2.हासिल-(i)निष्कर्ष, नतीजा (ii) प्राप्त, उपलब्ध, दस्तयाब
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नाज है अपनी बंदगी पर ऐ 'हसन',
जिसको चाहें वही खुदा होगा।
-हसन कमाल
1.बंदगी - पूजा, इबादत
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