वाय किस्मत आज
बज्मे-यार में,
लबकुशा हैं गैर, हम खामोश हैं।
-अब्र जौधपुरी
1.बज्म - महफिल, सभा, गोष्ठी
2. लबकुशा - बात करने वाला, बात करता हुआ
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सुरूरे-शब की नहीं
सुबह का खुमार हूँ मैं,
निकल चुकी है जो गुलशन से वह बहार हूँ मैं।
-'अजीज' लखनवी
1.सुरूरे-शब- रात का चढ़ता हुआ नशा
2. खुमार - सुबह का उतरता हुआ नशा।
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हंसो किसी पै तो दोनों जहाँ से डर के हंसो,
गुलों के लब पै भी कल देखी थी हंसी मैंने।
1.लब - होंठ, ओष्ठ
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हर कदम पै आज उसको गर्दिशों ने घेरा है,
जिसने कि गर्दिशों का रूख हर कदम पै फेरा है।
-अब्र अहसन गन्नौरी
1.गर्दिश - (i) मुसीबत, परेशानी (ii)
दुर्भाग्य, बदकिस्मती
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