शेर-ओ-शायरी

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काश अपनी जिन्दगी में हम ये मंजर देखते,
अब सरे-तुर्बत कोई, महशर-खिराम आया तो क्या?

-'दिल' शाहजहाँपुरी

1.सरे-तुर्बत - सबके सामने मेरी समाधि या कब्र पर

2.महशर-खिराम - जो अपनी चाल से दुनिया में कयामत मचा दे

 

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किस-किस तरह से हमने किया अपना जां निसार,
लेकिन गई न दिल से तेरी बदगुमानियाँ।

-हसरत मोहानी

1.निसार - न्योछावर, कुर्बान, सद्का 2. बदगुमानियाँ - किसी की ओर से बुरे खयाल, कुधारणाएं

 

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किसी को देके दिल कोई नवासंजे-फुगां क्यों हो,
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुंह में जुबाँ क्यों हो?
वह अपनी खून छोड़ेंगे हम अपनी वज्अ क्यों बदले
सुबकसर बन के क्या पूछें कि हमसे सरगिराँ क्यों हो?
वफा कैसी, कहाँ का इश्क जब सर फोड़ना ठहरा,
तो फिर ऐ संगे-दिल तेरा ही संगे-आस्तां क्यों हो?
यही है आजमाना तो सताना किसको कहते है?
अदू के हो लिये जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यों  हो?
कफस में हमसे रूदादे - चमन कहते न डर हमदम
गिरी है जिस पै कल बिजली वह मेरा आशियाँ क्यों हो?

-मिर्जा गालिब

1. नवासंजे-फुगां - आर्तनाद करने वाला, रोने वाला 2.खू - स्वभाव, आदत 3.वज्अ - शैली, ढंग, तरीका 4. सुबकसर - सर झुका कर, सर नीचे करके 5. सरगिराँ - रूष्ट, अप्रसन्न, नाखुश 6.संगे-दिल - पत्थर दिल 7.संगे-आस्तां - चौखट, दहलीज 8.अदू - दुश्मन, शत्रु 9.कफस - पिंजड़ा, कारागार 10.रूदादे - चमन - चमन में क्या गुजरी, उसकी दास्तान

 

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की मेरे कत्ल के बाद जफा से तौबा,
हाय उस जूद-पशेमां को पशीमाँ होना।

-मिर्जा 'गालिब'

1.जफा - जुल्म, अत्याचार 2.जूद-पशेमां - अपनी भूल पर शीघ्र पछताने वाला 3. पशीमाँ - लज्जित, शर्मिंदा, पछतानेवाला, पश्चातापी

 

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