शेर-ओ-शायरी

<< Previous  रंज-ओ-ग़म (Sorrows and sufferings)    Next>> 

'इकबाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ में,
मालूम क्या किसी को, दर्दे - निहाँ हमारा।

-मोहम्मद 'इकबाल'


1.महरम- जानने वाला, राजदार, परिचित, जान-पहचान का, मित्र, दोस्त

2. निहाँ - गुप्त, छिपा हुआ।
 

*****


इतना हम मौत से नहीं डरते,
जितना खाइफ है जिन्दगानी से।

-नरेश कुमार 'शाद'


1.खाइफ- भयभीत, त्रस्त, डरा हुआ।

 

*****

इतनी अर्जां तो न थी दर्द की दौलत पहले,
जिस तरफ भी जाइए, जख्मों के लगे हैं अंबार।
-'नदीम' कासिमी


1.अर्जां- सस्ता, मंदा, कम दामों का 2. अंबार -
ढेर , टाल, राशि।
 

*****


इतने मुगालते दिये उम्मीदो - बीम ने,
साहिल को मौज, मौज को साहिल बना दिये।
-सिराज लखनवी


1.मुगालता - धोखा, छल, फरेब, भ्रम, वहम, संदेह।

2बीम - निराशा, नाउम्मेदी।
 

*****

 

<< Previous  page - 1-2-3-4-5-6-7-8-9-10-11-12-13-14-15-16-17-18-19-20-21-22-23-24-25-26-27-28-29-30-31-32-33-34-35-36-37-38-39-40-41-42-43-44-45-46-47-48-49-50-51-52-53-54-55-56-57-58  Next >>