महवे-तलाशे-राहत तू
यह भी जानता है,
कहते हैं जिसको राहत वह गम की इन्तिहा है।
-'अफसर' मेरठी
1.
महवे-तलाशे-राहत
-
सुख-चैन की तलाश में लीन
*****
मिजाजे-गम से जिन्हें
आगही नहीं होती,
खुशी के वक्त भी उनको खुशी नहीं होती।
फसुर्दा देख के तुमको ख्याल आता है,
फसुर्दगी में भी कम दिलकशी नहीं होती।
शरीक-ए- दर्द बनाने चले हो 'शाद' किसे,
शरीक -ए-दर्द यह दुनिया कभी नहीं होती।
-नरेश कुमार
शाद
1.आगही
- परिचय, पहचान
2.फसुर्दा-
खिन्न, मलिन, उदास, मुरझाया हुआ
3. फसुर्दगी
- खिन्नता, उदासी, कुम्हलाहट मुरझा जाना
4. शरीक-ए- दर्द
- दर्द अपने दर्द में शामिल करना, अपना दर्द दूसरों में बांटना
*****
मेरे दर्द में निहाँ है
वह निशाते-जाविदानी,
कि निचोड़ दूँ जो आहें, टपक पड़े तबस्सुम।
-'नाजिश' प्रतापगढ़ी
1. निहाँ - छिपा हुआ, निहित 2.
निशाते-जाविदानी - शाश्वत आनन्द, हमेशा
रहने वाली खुशी 3.तबस्सुम -
मुस्कान, मुस्कुराहट
*****
मेरे लबों का तबस्सुम
तो सबने देख लिया,
जो दिल पै बीत रही है, वह कोई क्या जाने।
-'इकबाल' सफीपुरी
1.लब – होंठ 2.तबस्सुम -
मुस्कान
*****
<<
Previous
page
-1-2-3-4-5-6-7-8-9-10-11-12-13-14-15-16-17-18-19-20
Next >>