शेर-ओ-शायरी

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महवे-तलाशे-राहत तू यह भी जानता है,
कहते हैं जिसको राहत वह गम की इन्तिहा है।

-'अफसर' मेरठी


1. महवे-तलाशे-राहत - सुख-चैन की तलाश में लीन
 

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मिजाजे-गम से जिन्हें आगही नहीं होती,
खुशी के वक्त भी उनको खुशी नहीं होती।
फसुर्दा देख के तुमको ख्याल आता है,
फसुर्दगी में भी कम दिलकशी नहीं होती।
शरीक-ए- दर्द बनाने चले हो 'शाद' किसे,
शरीक -ए-दर्द यह दुनिया कभी नहीं होती।

-नरेश कुमार शाद


1.आगही - परिचय, पहचान 2.फसुर्दा- खिन्न, मलिन, उदास, मुरझाया हुआ
3. फसुर्दगी - खिन्नता, उदासी, कुम्हलाहट मुरझा जाना 4. शरीक-ए- दर्द - दर्द अपने दर्द में शामिल करना, अपना दर्द दूसरों में बांटना


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मेरे दर्द में निहाँ है वह निशाते-जाविदानी,
कि निचोड़ दूँ जो आहें, टपक पड़े तबस्सुम।

-'नाजिश' प्रतापगढ़ी


1. निहाँ - छिपा हुआ, निहित 2. निशाते-जाविदानी - शाश्वत आनन्द, हमेशा रहने वाली खुशी 3.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कुराहट

 

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मेरे लबों का तबस्सुम तो सबने देख लिया,
जो दिल पै बीत रही है, वह कोई क्या जाने।

-'इकबाल' सफीपुरी


1.लब – होंठ 2.तबस्सुम - मुस्कान

 

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