उनकी वह आमद-आमद है, अपना यहाँ ये आलम,
इक रंग जा रहा है, इक रंग आ रहा है।
-जिगर मुरादाबादी
1.आमद-आमद - किसी के आगमन की धूमधाम, किसी के आने की खबर
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उनके आने
की बंधी थी, आस जब तक हमनशीं,
सुबह हो जाती थी अक्सर जानिबे - दर देखते।
-असर लखनवी
1.हमनशीं - साथ बैठने वाला, मित्र
2.जानिबे–दर - दरवाजे की ओर
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उम्रे-दराज मॉंगकर लाये थे चार दिन
दो आरजू में कट गये, दो इन्तिजार में
कितना है बदनसीब 'जफर' दफ्न के लिये
दो गज जमीं भी न मिली कू-ए-यार में।
-बहादुर शाह 'जफर'
1. दराज - लंबी, तवील 2. कू-ए-यार - प्रेमिका की गली
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उम्र कैसे कटेगी 'सैफ' यहाँ,
रात कटती नजर नहीं आती।
-सैफ
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कभी - कभी तो बहुत इन्तिजार रहता है,
एक ऐसे शख्स का जो मुझे जानता भी नहीं।
-मंजूर हाशमी
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