शेर-ओ-शायरी

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 खुदी की इब्तिदा यह थी कि अपने आप में गुम थे,
खूदी की इन्तिहा ये है कि खुदा को याद करता हूँ।


1.खुदी - यह भाव कि बस हमीं हम है, अहंकार, गर्व, घमंड

2.इब्तिदा - शुरूआत, आरम्भ

 

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खुलूसे-दिल से हो सिज्दे तो उन सिज्दों का क्या कहना,
सरक आया वहीं काबा, जहां हमने जबीं रख दी।

 

1.खुलूसे-दिल से - सच्चे दिल से, निष्कपट दिल से 2. काबा - मक्के की एक इमारत जिसे मुसलमान ईश्वर का घर मानते हैं 3. जबीं - माथा, भाल
 

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छोड़ा नहीं खुदी को, दौड़े खुदा के पीछे,
आसां को छोड़ बंदे, मुश्किल को ढूंढ़ते हैं।


1.खुदी - अहंकार, अभिमान, यह भाव कि हमीं हम है

 

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'जफर' आदमी उसको न जानिएगा,
हो वो कैसा ही साहिबे-फहमो-जका।
जिसे ऐश में यादे - खुदा न रहा,
जिसे तैश में खौफे - खुदा न रहा।

-'जफर'


1.साहिबे-फहमो-जका - समझ-बूझ वाला, विवेकशील, समझदार

2. ऐश - भोग-विलास, खाने-पीने का आनन्द, विषयवासना

3.तैश - क्रोध, कोप, गुस्सा
 

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