शेर-ओ-शायरी

 बहजाद लखनवी (Bahjaad Lakhnavi)

गिरा देंगे नजरों से अपनी वह मुझको,
निगाहों में उनकी समाकर करूँ क्या?
 

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नाकामियों के खौफ ने दीवाना कर दिया,
मंजिल के सामने भी पहूँच के निराश हूँ।
 

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मुझको तो खुद तबाहियाँ अपनी पसंद हैं,
बिजली तड़प रही है क्यों आशियाँ से दूर।

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