बदल डाला है अब तो अंदाजे - बयां हमने,
बगरना बंद कर दी थी फरिश्तों की जुबाँ हमने।
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मेरे अश्यारे-दिलकश को जगह दे अपने पहलू
में,
कि ये नगमें तेरे सच्चे रफीके - जिन्दगी होंगे।
-फिराक गोरखपुरी
1.अश्यार
- शेर
2.पहलू
- पार्श्व, बगल
3. रफीक - मित्र, सखा, दोस्त, हमराही, सहचर
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सुनो तो अर्ज करें मान लो तो क्या कहना,
तुम्हारे पास हम आये थे
इक जरूरत से।
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हम
सहने-गुलिस्ताँ में अक्सर, यह बात भी सोचा करते हैं,
यह आंसू है किन आंखों के फूलों पै जो बरसा करते हैं।
-नक्वी कासिम बशीर
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हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि 'गालिब' का है अन्दाजे-बयां और।
-मिर्जा गालिब
1.सुखनवर - शायर
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