शेर-ओ-शायरी

            फिराक गोरखपुरी (Firaq Gorakhpuri)  Next >>

अपना गम किस तरह से बयान करूँ,
आग लग जायेगी इस जमाने में।


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 अब तुमसे रूखसत होता हूँ, लो संभालो यह साज,
 नये तराने छोड़ो कि मेरे नग्मों को नींद आती है।

 

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आज कैसी हवा चली ऐ 'फिराक',
 
आख बेइख्तियार भर आई।
 

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इस दौर में जिन्दगी बशर की,
 
बीमार की रात हो गयी है।

 1.
बशर -  मनुष्य, मानव, आदमी
 

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