आप गैरों की बात करते हैं, हमने अपने भी आजमाए हैं,
लोग कांटों से बचके चलते है, हमने फूलों से जख्म खाए हैं।
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कल जो अपने थे अब पराये हैं, क्या सितम आसमाँ ने ढाये हैं,
दिल दुखा होंठ मुस्कराये हैं, हमने ऐसे भी गम उठाये
हैं।
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मैंने पी ली तेरी निगाहों से,
लोग कैसी शराब लाये हैं।
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हिज्र की शब और तन्हाई,
न आप आये, न मौत आई है।
1.हिज्र
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विरह,
वियोग
2.शब
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रात
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