शेर-ओ-शायरी

अनवर मिर्जापुरी (Anwar Mirzapuri)  

कुछ तो मिल जाये लबे-शीरीं से,
जहर खाने की इजाजत ही सही।


           

 1.
लबे-शीरीं - धुर या मीठे होंठ    
  

 
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 तुम  तसल्ली न दो पास  बैठे रहो,
 वक्त कुछ मेरे मरने का टल जायेगा।
 ये क्या कम है मसीहा के रहने से ही,
 मौत  का भी इरादा बदल  जायेगा।

 
        
 1.
मसीहा -  इसा मसीह जो दीन- दुखियों का दुख दूर करते थे और जो मुर्दों को जिला देते थे।


 
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 तू गम दे  या खुशी, तुझे  इख्तियार है,
 
हम बेनियाज हो गये, दामन पसारकर।
 
               
 1.
बेनियाज - निस्पृह, जिसे किसी से कुछ लेने की इच्छा न हो I
 

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मैंने खुद अपना  सफीना नज्रे-तूफां कर दिया,
 
यास की नजरों से तकता ही रहा साहिल मुझे।
                             

 1.
सफीना - नाव, नौका, कश्ती 2. नज्रे-तूफां - तूफान की भेंट

3. यास - निराशा  4. साहिल - किनारा, तट
  

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यह मस्तियों का रंग है जोशे-शबाब में,
 
गोया  कि  वह नहाए  हुए  है शराब मे।
                 
 1.
जोशे-शबाब - जवानी के जोश में, जवानी के जोर या युवावस्था के उमंग मे
 

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