शेर-ओ-शायरी

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कनाअत न कर आलमे-रंगो-बू पर,
चमन और भी, आशियां और भी है।
तू शाही है परवाज है काम तेरा,
तेरे सामने आसमां और भी है।

-मोहम्मद इकबाल

1. कनाअत - संतोष 2. आलम - जगत्, संसार, दुनिया 3. रंगो-बू - फूलों का रंग और उनका सुगंध (या दुनिया की रंगीनियाँ) 4. शाही - बाज पक्षी, श्येन 5.परवाज - उड़ान

 

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कनारों से मुझे ऐ नाखुदा तुम दूर ही रखना,
तहाँ लेकर चलो तूफां जहाँ से उठने वाला है।


1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार

 

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कफस में खींच ले जाए मुकद्दर या निशेमन में,
हमें परवाजे-मतलब है, हवा कोई भी चलती हो।

-सीमाब अकबराबादी

1. कफस - पिंजड़ा, कारागार 2. निशेमन - घोंसला, नीड़

3. परवाजे - उड़ान

 

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कभी मौत कहती है अलहजर, कभी दर्द कहता है रहम कर,
मैं वह राह चलता हूँ पुरखतर कि जहाँ फना का गुजर नहीं।

-असर लखनवी

1.अलहजर - बस करो, बचाओ 2. रहम - दया, कृपा, मेहरबानी, इनायत 3.पुरखतर - भीषण, भयानक, अत्यन्त खतनराक

 4. फना - (i) मृत्यु, मौत (ii) विनाश, बर्बादी

 

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