चमन में यूँ
तो कहने को बहुत हैं आशियाँ लेकिन,
गिरेगी जिसपै कल बिजली वह मेरा आशियाँ होगा।
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चाहा था ठोकरों
में गुजर जाये जिन्दगी,
लोगों ने संगे-राह समझकर हटा दिया।
1. संगे-राह -
राह का पत्थर
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जल के आशियाँ अपना खाक हो चुका कब का,
अब तक यह आलम है, रौशनी से डरते हैं।
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जो काफिले खिजाँ से भी लूटे न जा सके,
लुट गये वो काफिले फस्ले-बहार में।
-'राही' शिहाबी
1. फस्ले-बहार - वसन्त
ऋतु
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