कनाअत न कर
आलमे-रंगो-बू पर,
चमन और भी, आशियां और भी है।
तू शाही है परवाज है काम तेरा,
तेरे सामने आसमां और भी है।
-मोहम्मद इकबाल
1. कनाअत - संतोष 2. आलम -
जगत्, संसार, दुनिया 3. रंगो-बू
- फूलों का रंग और
उनकी सुगंध
(यानी
दुनिया की रंगीनियाँ)
4. शाही - बाज पक्षी, श्येन 5.परवाज - उड़ान
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कफस में खींच
ले जाए मुकद्दर या निशेमन में,
हमें परवाजे-मतलब है, हवा कोई भी चलती हो।
-सीमाब अकबराबादी
1. कफस - पिंजड़ा, कारागार
2. निशेमन -
घोंसला, नीड़ 3. परवाज -
उड़ान
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कफस
में जी नहीं लगता है, आह फिर भी मेरा,
यह जानता हूँ कि तिनका भी आशियाँ में नहीं।
-'अजीज' लखनवी
1. कफस- पिंजरा, कारागार।
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कफस
में रहके भी हम तो उन्हें भुला न सके,
क्या हमें भी याद किया आशियाँ वालों ने।
-अदीब सहारनपुरी
1.कफस - पिंजडा
2.आशियाँ - घोंसला, नीड
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